शनिवार, 21 अगस्त 2010

तात्या टोपे का बलिदान

तात्या टोपे १८५७ की सशस्त्र क्रांति के तेजस्वी सेनानी थे । बिठूर (कानपुर) से लेकर ग्वालियर तक अनेक युद्धों में उन्होंने अंग्रेजी सेना को एक ऐसी शिकस्त दी थी कि गोरे सेनाधिकारी "तात्या-टोपे" का नाम सुनकर कांप उठते थे । नाना साहेब पेशवा तथा राव साहब तात्या टोपे की तलवार के वार देखकर हतप्रभ रह जाते थे ।

अंग्रेज सेनापति होम्स किसी भी प्रकार अंग्रेजी शासन के लिए आतंक बने तात्या टोपे को पकड़ने के लिया दिन-रात एक किये हुए था । उसने ग्वालियर के सरदार मानसिंह के माध्यम से तात्या टोपे को पकड़ने का षड़यंत्र रचा ।

७ अप्रैल, १८५९ को रात्रि के समय शिवपुरी के बीहड़ जंगल में मानसिंह के ठिकाने पर सोये हुए तात्या टोपे को गोरे सैनिकों ने घेर लिया ।

सैनिक न्यायालय में तात्या पर कानपुर में असंख्य अंग्रेजों की हत्याएं कराने का आरोप लगाकर मुकदमा चला दिया। तात्या टोपे ने अदालत में निर्भीकता से कहा "मैंने मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किया है । मैं तोप से उड़ाए जाने या फांसी पर चढ़ने के लिए तैयार हूँ।"

१८ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या टोपे को फांसी देने ले जाया जा रहा था। नियमानुसार जब फांसी से पूर्व उनके हाँथ पीछे से बांधे जाने लगे तो उन्होंने कहा-"ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है । मैं स्वयं से ही फंदा गले में डालूँगा।" और देखते देखते वह फांसी पर झूल गये।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin