मंगलवार, 27 जुलाई 2010

आप अपना पता दीजिये

एक व्यक्ति स्वामी विवेकानंद के प्रवचनों से बहुत प्रभावित हुआ .जब सभी लोग चले गए तो वह स्वामी जी के पास गया और बोला -' लगता है आपकी ईश्वर तक पहुँच है, क्या आप मुझे ईश्वर तक पहुंचा सकते है या उनका पता बता सकते है ?'

इस पर विवेकानंद ने कहा -'आप अपना पता लिखकर दे दीजिये जब भी ईश्वर को फुरसत होगी तो आपके घर भेज दूंगा.'

उसने तुरंत एक कागज पर अपने घर का पता लिख डाला और स्वामी जी को थमाते हुए बोला-'जरा जल्दी ही भेजिएगा.'

स्वामी जी ने उसे ध्यान से पूरा पढ़ा, पढने के बाद बोले- 'ये तो आप अपने ईंट-पत्थर से बने मकान का पता दे रहे है, आप अपना पता दीजिये की आप कौन है ? कहाँ है ? किस काम के लिए आपको भेजा गया है और आप क्या कर रहे है ? '

उस व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हुआ स्वामी जी के उत्त्कृष्ट दार्शनिकता को अब वह समझ गया था . वह अब जान गया था कि मनुष्य का असली पता, जिसे वो कभी जानने या खोजने का प्रयास नहीं करता वो तो उसके अन्दर ही है जिसे खोज ले, पता कर ले तो ईश्वर से हर पल मुलाकात होती रहे . 

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