गुरुवार, 29 जुलाई 2010

जीवन एक वीणा

एक घर में बहुत दिनों पुरानी एक वीणा रखी हुई थी । लोग उसको उपयोग में नही लाते थे जिसके चलते पड़ी-पड़ी वो धूल खाती रहती थी। रात में अगर भूल से कोई बच्चा उसे गिरा देता तो आधी रात में उसके तार झनझना जाते और घर के लोगो की नींद टूट जाती । वह वीणा एक उपद्रव का कारण बन गयी थी ।

अंततः उस घर के लोगो ने यह तय किया की इसे घर के बाहर फ़ेंक दिया जाए क्योंकि यह जगह घेरती है, कचरा इकठ्ठा करती है और घर की शान्ति भी भंग करती है । सब मिलकर वीणा को घर के बाहर कूडेदान में फेकने चल दिए।

अभी वो फेंककर लौट भी न पाये थे की उधर से एक व्यक्ति गुजरा और उसकी नजर उस वीणा पर पड़ी । उसने उस वीणा को उठाकर धुल झाडे और तारो को ठीक से कसा और उनके तारो को छेड़ने लगा । फिर क्या था ? अब तो नजारा ही बदल गया । जो भी उस रास्ते से गुजरता वही ठिठक कर खड़ा हो जाता और उसके मधुर संगीत में खो जाता, चारो ओर भीड़ लग गयी। वह व्यक्ति मंत्रमुग्ध होकर वीणा बजा रहा था चारो तरफ शमां सा बाँध गया । जैसे ही उसने वीणा बजाना बंद किया की फिर सब झपट पड़े, बोले, यह वीणा हमारी है, इसे हमे वापस कर दो।

वह व्यक्ति हंस पड़ा और बोला, 'पहले इसे बजाना तो सीख लो , अन्यथा फिर यह उपद्रव पैदा करेगा । बजाना न आता हो तो वीणा घर की शान्ति भंग कर देती है। और यदि बजाना आता हो तो घर को शांतिपूर्ण एवं संगीतमय बना देती है। '

जीवन भी एक वीणा की तरह है । इस वीणा को बजाना बहुत कम लोग ही जान पाते है इसलिए तो इतनी उदासी है ,दुःख है,इतनी पीडा है। जो जीवन एक संगीत बन सकता था ,वह विसंगतिपूर्ण बन गया है।

1 टिप्पणी:

vandana gupta ने कहा…

जीवन भी एक वीणा की तरह है । इस वीणा को बजाना बहुत कम लोग ही जान पाते है इसलिए तो इतनी उदासी है ,दुःख है,इतनी पीडा है। जो जीवन एक संगीत बन सकता था ,वह विसंगतिपूर्ण बन गया है।


waah ............yahi to jiivan ka satya hai.

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