मंगलवार, 27 जुलाई 2010

कर्म को सौभाग्य मानो

एक व्यक्ति बन रहे मंदिर के पास से गुजर रहा था ,वहा कुछ मजदूर काम करते हुए दिख रहे थे .उसने एक मजदूर से पूछा ,'क्या कर रहे हो ?' मजदूर ने खीझते हुए ऊँचे स्वर में बोला ,' भाग्य में पत्थर तोडना ही तो लिखा हुआ है सो पत्थर तोड़ रहा हूँ '.

थोड़ी दूर पर एक और मजदूर था उसने उसके नजदीक जाकर उसी प्रश्न को पूछा ,तो दुसरे मजदूर ने बहुत उदासी और निराश भाव से बोला ,' अपना रोजी रोटी कमा रहा हूँ '.

अभी भी उस व्यक्ति असमंजस में था कि यहाँ क्या हो रहा है इसलिए उसने फिर वही काम कर रहे तीसरे मजदूर से पूछा कि 'क्या कर रहे हो ?'

तीसरा मजदूर बड़ा ही उत्साहित और उर्जावान लग रहा था ,उसने बड़े ही आनंदित मुद्राभाव में बोला, ' प्रभु का मंदिर बना रहा हूँ इसी बहाने मेरे श्रम की चार बुँदे प्रभु के काम आ जाएगी. ' 

जीवन में कुछ लोग पहले मजदूर की तरह है जो सिर्फ पत्थर तोड़ते है -मजबूरीवश काम करते है ,कुछ दुसरे मजदूर की तरह है जो रोजी रोटी कमा रहे है -वे लाचार मशीन की तरह काम कर रहे है और कुछ इस तरह के लोग भी मिलते है जो तीसरे मजदूर की तरह अपने कर्म को अपना सौभाग्य और पूजा मान कर पुरे समर्पण से अपना कार्य करते है और तब यही काम उनके कामयाबी का द्वार खोलता है . 

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