शनिवार, 19 दिसंबर 2009

जंगल का फूल

एक दिन पं. जवाहरलाल नेहरू जी ने शास्त्री को जंगल का फूल कह दिया। शास्त्री जी ने उत्तर दिया-:पंडित जी, जंगल में जो आजादी और स्वच्छता है, वह बगीचे में कहाँ ?

लेकिन पूजा में प्रयुक्त होते है बगीचे के फूल, देवों के शीश चढ़ते है बगीचे के फूल - पंडित जी ने तर्क दिया।

स्वाभाविक हास-परिहास में शास्त्री जी ने उत्तर दिया-`` देवता के सिर पर चढ़ने की अपेक्षा, क्या विश्व कल्याण के लिए सुंगन्ध बिखेरना क्या कम है। फूल देवताओ के लिए ही क्यो खिले, क्या दूसरे जीव तुच्छ है ।

पुत्री नही भानजी

हरिनारायण आप्टे बड़े उदार थे। उनकी भोजन बनाने वाली की पाँच-छह वर्ष की पुत्री का उनसे बड़ा स्नेह था। भोजन वे उसी के साथ करते थे। एक बार आप्टेजी के घर एक मेहमान आया। बच्ची को आप्टैजी के साथ भोजन करते देख उसने कहा-: प्रतीत होता है, यह आपकी प्रथम पुत्री की सुपुत्री है।´´आप्टेजी ने जवाब दिया-::पुत्री नही, यह मेरी भानजी है।´´

सेवा की साध

देशबंधु चितरंजनदास के दादा जगबंधु एक परोपकारी पुरूष थे। थके माँदे मुसाफिरों के लिए उन्होनें अपने गाँव में एक धर्मशाला बनावा रखी थी। उनके हृदय में सभी प्रकार के दुखिया मनुष्यों के प्रति सहानुभूति थी। एक दिन पालकी में बैठकर वे गाँव जा रहे थे। रास्ते में गर्मी से बेहाल और चलने में असमर्थ एक ब्राह्मण जा रहा था। जगबंधुदास स्वयं पालकी से उतर गए और उस ब्राह्मण को पालकी में बैठाकर गाँव पहुँचाया। 

अपना मुँह गंदा क्यो करूँ

पं. मदनमोहन मालवीय बम्बई में ठहरे हुए थे। रात्रि के समय बम्बई के प्रसिद्ध विद्वान पं. रमापति मिश्र उनसे मिलने के लिए आये। मिश्र जी बोले- ``मालवीय जी! मैंने तो अपने में बहुत सहनशीलता बढ़ा ली है। आप चाहे तो सौ गालियां देकर देख ले,मुझे क्रोध नही आयेगा´´। मालवीय जी हँसते हुए बोले- ``मिश्र जी! आपकी बात तो ठीक हे पर क्रोध की परीक्षा तो सौ गाली देने के बाद होगी। उससे पूर्व ही पहली गाली में मेरा मुँह गंदा हो जाएगा।´´ मालवीय जी के इस उत्तर को सुनकर मिश्र जी नत मस्तक हो गए। 

किसी ने बताया नही

मालोद ताल्लूक के एक गांव में लगभग 50 गाँवों के भीलों को एकत्र कर उन्हें बताया गया कि शराब पीना पाप है। भीलों को इस बात का आश्चर्य हुआ कि उन्हे ऊंची जाति वालों ने पहले क्यों नही बताया ? उन्होनें आजीवन शराब न पीने की प्रतिज्ञा की और 64 वर्ष बीत गए आज भी अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ है ।

प्रिय रस

प्रसिद्ध गुजराती कवि कलापी से एक बार एक शिक्षित व्यक्ति ने पूछा-``श्रृंगार, करूणा, वीर, आदि में से कौन सा रस आपको अधिक प्रिय है ?´´ समाज के लिए हितकर हो,मुझे वही रस प्रिय है, चाहे वह करूण रस हो या वीर रस। `कवि कलापी´ ने उत्तर दिया।

परोपकार के लिए स्वयं संकट में

स्वामी विवेकानन्द उन दिनों इंग्लैंड में थे। एक दिन वो अपने कुछ मित्रो के साथ देहात का भ्रमण करने कि लिए गये, तब अचानक एक बलिष्ठ सांड उधर से ही दौडता आ रहा था। उसे आता देखकर उनके साथ के लोग घबराकर इधर-उधर भागने लगे। 

इस भगदड़ में एक छोटी सी लड़की टक्कर खाकर नीचे गिर गई।वह सांड उस बालिका की ओर ही आ रहा था । स्वामी जी यह देखकर सावधान हो गये और दौड़कर सांड के सामने डट गए। सांड एकदम रूक गया और दूसरी ओर चल दिया। बच्ची के बचाव के लिए अपने को खतरे में डालने वाले स्वामी जी का यह साहस देखकर उनके सब साथी चकित रह गये।

वीर-प्रसविनी वीर माता


चित्तोड़ के राजकुमार अरि सिंह एक सुअर का पीछा कर रहे थे, सुअर एक खेत में घुस गया, जिसकी एक किसान बालिका रखवाली कर रही थी। बालिका ने कहा-``खबरदार घोड़े वाले शिकारी ! खेत में घुस कर फसल बरबाद न करना, मैं खुद सुअर को निकाल देती हूं।´´ 

वीर बालिका मोटा डंडा लेकर खेत में घुसी और डंडे से ही सुअर को मार डाला। राजकुमार युवती की वीरता पर मुग्ध हो गया, उसी से विवाह कर लिया। वीर हम्मीर देव इसी बालिका की सन्तान थे।

भीख लेना अपमान

एक हाथ, एंक पांव से अपंग लड़का रेल के डिब्बे में घुसा, एक सज्जन ने दयाभाव दिखाते हुए एक रूपया देना चाहा, तो उस बच्चे ने कहा-``श्रीमानजी ! भगवान् के दिये 12 अंगो में से 2 खराब हैं।´´ मुंगफली बेचकर उद्योग करने वाला यही लड़का ब्रेसब्रेन का महान् उद्योगपति हुआ।

निन्दा की चिन्ता

एक बार एक व्यक्ति ने स्वामी दयानंद से पूछा-``बहुत से व्यक्ति आपकी निन्दा करते हैं, इन्हें कैसे रोका जाये ?´´

स्वामी जी ने कहा-``निन्दा से तो ईश्वर भी नहीं बच सका, फिर हमारी तो बात ही क्या हैं ? यदि मनुष्य अपनी आत्मा के सामने सच्चा हैं तो उसे सारी दुनिया की परवाह नहीं करनी चाहिए ।´´

मनुष्य की शक्ति बड़ी हैं या बीमारी की

कलकत्ता में प्लेग फैला था। स्वामी विवेकानन्द जी सारी साधना-उपासना छोड़कर पीड़ितों की सेवा के लिए कलकत्ता चल पड़े, एक भक्त ने उन्हें रोकते हुए कहा-``आपको कुछ हो गया तो ?´´ स्वामी जी बीच में ही बोल पड़े-``चलों देखे तो मनुष्य की शक्ति बड़ी हैं या बीमारी की।´´ 

शिक्षा का समय

एक महिला शिकागो के प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री फ्रांसिस वेलेंड पार्कर से यह पूछने गई कि वह अपने बच्चों की शिक्षा कब से प्रारंभ करे ? पार्कर ने पूछा, आपका बच्चा कब जन्म लेगा ? महिला ने कहा,-``वह तो पॉंच वर्ष का हो गया हैं।´´ इस पर पार्कर ने कहा-``मेडम ! अब पूछने से क्या फायदा ? शिक्षा का सर्वोत्तम समय तो पॉंच वर्ष तक ही होता हैं, सो आपने यो ही गँवा दिया।´´ 

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin