रविवार, 22 नवंबर 2009

क्या करें, क्या न करें ? - 1

1. दो घटी अर्थात् अड़तालिस मिनट का एक मुहूर्त होता हैं। प्रन्द्रह मुहूर्त का एक दिन और पंद्रह मुहूर्त की एक रात होती हैं। सूर्योदय से तीन मुहूर्त का `प्रात:काल´, फिर तीन मुहूर्त का `संगवकाल´, फिर तीन मुहूर्त का मध्यान्ह काल´, फिर तीन मुहूर्त का `अपरान्हकाल´ और उसके बाद तीन मुहूर्त का `सायंकाल´ होता हैं। (विष्णुपुराण 2/8/61-64)
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2. ऋषियों ने प्रतिदिन सन्ध्योपासन करने से ही दीर्घ आयु प्राप्त की थी। इसलिए सदा मौन रहकर द्विजमात्र को प्रतिदिन तीन समय सन्ध्या करनी चाहिये। प्रात:काल की सन्ध्या ताराओं के रहते-रहते, मध्यान्ह की सन्ध्या सूर्य के मध्य-आकाश में रहने पर और सांयकाल की सन्ध्या सूर्य के पश्चिम दिशा में चले जाने पर करनी चाहिये। (महाभारत, अनु. 104/18-19)

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3. दोनों सन्ध्याओं तथा मध्यान्ह के समय शयन, अध्ययन, स्नान, उबटन लगाना, भोजन और यात्रा नहीं करनी चाहिये। (पद्मपुराण, स्वर्ग 55/71-72)

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4. रात में दही खाना, दिन में तथा दोनों सन्ध्याओं के समय सोना और रजस्वला स्त्री के साथ समागम करना-ये नरक की प्राप्ति के कारण हैं। (ब्रह्मवैवर्तपुराण, ब्रह्म. 27/40)

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5. अत्यन्त सबेरे, अधिक साँझ हो जाने पर और ठीक मध्यान्ह के समय कही बाहर नहीं जाना चाहिये। (मनुस्मृति 4/140)

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6. रात्रि मे पेड़ के नीचे नहीं रहना चाहिये। (मनुस्मृति 4/73)

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7. अमावस्या के दिन जो वृक्ष, लता आदि को काटता हैं अथवा उसका एक पत्ता भी तोड़ता हैं, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता हैं। (विष्णुपुराण 2/12/10)

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8. सन्ध्याकाल में भोजन, स्त्रीसंग, निद्रा तथा स्वाध्याय-इन चारों कर्मों को नहीं करना चाहिये। कारण कि भोजन करने से व्याधि होती हैं, स्त्रीसंग करने से क्रूर सन्तान उत्पन्न होती हैं, निद्रा से लक्ष्मी का ह्रास होता हैं और स्वाध्याय करने से आयु का नाश होता हैं। (यमस्मृति 76-77)

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9. पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या प्राप्त होती हैं। दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन तथा आयु की वृद्धि होती हैं। पश्चिम की तरफ सिर करके से प्रबल चिन्ता होती हैं। उत्तर की तरफ सिर करके सोने से हानि तथा मृत्यु होती हैं अर्थात् आयु क्षीण होती हैं। (भगवंतभास्कर, आचारमयुख)

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10. टूटी खाट पर नहीं सोना चाहिये। (महाभारत, अनु. 104/49)

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11. सिर को नीचा करके नहीं सोना चाहिये। (सुश्रुतसंहिता, चिकित्सा 24/98)

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12. जूठे मुँह नहीं सोना चाहिये। (महाभारत, अनु. 104/67)

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13. नग्न होकर नहीं सोना चाहिये। (मनुस्मृति 4/75)

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14. भीगे पैर नहीं सोना चाहिये। सूखे पैर सोने से लक्ष्मी प्राप्त होती हैं। (मनुस्मृति 4/76)

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15. निद्रा के समय मुख से ताम्बुल, शय्या से स्त्री, ललाट से तिलक और सिर से पुष्प का त्याग कर देना चाहिये। (धर्मसिंधु 3 पू.क्षुद्रकाल)

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16. रात्रि में पगड़ी बाँध कर नहीं सोना चाहिये। (विष्णु धर्मोत्तर . 2/89/24)

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17. दिन में कभी नहीं सोना चाहिये। रात के पहल और पिछले भाग में भी नींद नहीं लेनी चाहिये। रात के प्रथम और चतुर्थ पहर को छोड़कर दूसरे और तीसरे पहर में सोना उत्तम हैं। (नारदपुराण, पू. 26/27)

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18. जिसके सोते-सोते सूर्योदय अथवा सूर्यास्त हो जाय, वह महान् पाप का भागी होता हैं और बिना प्रायिश्चत्त (कृच्छªव्रत)-के शुद्ध नहीं होता। (भविष्यपुराण , ब्राह्म. 4/90)

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19. स्वस्थ मनुष्य को आयु की रक्षा के लिये ब्राह्ममुहूर्त में उठना चाहिये। (देवीभागवत 11/2/2)

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20. किसी सोये हुये मनुष्य को नहीं जगाना चाहिये। (याज्ञवल्क्यस्मृति1/138)

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21. विद्यार्थी, नौकर, पथिक, भूख से पीड़ित, भयभीत, भण्डारी और द्वारपाल-ये सोते हुए हो तो इन्हें जगा देना चाहिये। (चाणक्यनीति. 9/6)

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22. निवास स्थान से दूर दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम (नैऋZत्य) दिशा में जाकर मल-मूत्र का त्याग करना चाहिये। (आपस्तम्बधर्मसूत्र 1/11/32/2)

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23. सिर को वस्त्र से ढककर मल-मूत्र का त्याग करना चाहिये। (पद्मपुराण, क्रियायोग. 11/9)

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24. गाँव से नैऋZत्यकोण में जाकर इस मन्त्र का उच्चारण करे-
गच्छन्तु ऋषयो देवा: पिशाचा ये च गुह्यका:।
पितृभूतगणा: सर्वे करिष्ये मलमोचनम्।।

`यहाँ जो ऋषि , देवता, पिशाच, गुह्यक, पितर तथा भूतगण हों, वे चले जाये, मै यहाँ मल-त्याग करूँगा।´ - ऐसा कहकर तीन बार ताली बजाये और सिर को वस्त्र से ढककर मलत्याग करे। (नारदपुराण पूर्व.66/3-4)

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