बुधवार, 15 जुलाई 2009

महापुरुषों के विचार - १

१- जब तुम नही होगे ,तब तुम पहली बार होगे। - आचार्य रजनीश
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२- तुम मुझे खून दो, मै तुन्हे आजादी दूँगा । - नेता जी सुभाषचंद्र बोस
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३- मै एक मजदूर हूँ । जिस दिन कुछ लिख न लूँ , उस दिन मुझे रोटी खाने का कोई हक नहीं। - प्रेमचंद
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४- विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है । — मैथ्यू अर्नाल्ड
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५- संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति । — चाणक्य
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६- सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें । — गोथे
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७- किसी कम पढे व्यक्ति द्वारा सुभाषित पढना उत्तम होगा। — सर विंस्टन चर्चिल
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८- बुद्धिमानो की बुद्धिमता और बरसों का अनुभव सुभाषितों में संग्रह किया जा सकता है। — आईजक दिसराली
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९- विज्ञान हमे ज्ञानवान बनाता है लेकिन दर्शन (फिलासफी) हमे बुद्धिमान बनाता है । — विल्ल डुरान्ट
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१०- कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है।
–रामधारी सिंह दिनकर
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११- कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी । –रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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१२- कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है । — रामधारी सिंह दिनकर
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१३- निज भाषा उन्नति अहै, सब भाषा को मूल । बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को शूल ॥
— भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
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१४- सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है | –अनंत गोपाल शेवड़े
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१५- जो कोई भी हों , सैकडो मित्र बनाने चाहिये । देखो, मित्र चूहे की सहायता से कबूतर (जाल के) बन्धन से मुक्त हो गये थे । — पंचतंत्र
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१६- को लाभो गुणिसंगमः ( लाभ क्या है ? गुणियों का साथ ) — भर्तृहरि
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१७- सत्संगतिः स्वर्गवास: ( सत्संगति स्वर्ग में रहने के समान है ) — पंचतंत्र
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१८- गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा । ( हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है ) — गोस्वामी तुलसीदास
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१९- नहीं संगठित सज्जन लोग । रहे इसी से संकट भोग ॥ — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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२०- अच्छे मित्रों को पाना कठिन , वियोग कष्टकारी और भूलना असम्भव होता है। — रैन्डाल्फ
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२१- एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है । –अज्ञात
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२२- बाँटो और राज करो , एक अच्छी कहावत है ; ( लेकिन ) एक होकर आगे बढो , इससे भी अच्छी कहावत है ।
— गोथे
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२३- किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो रखो परंतु विपत्ति की आंच आने पर कष्टों-प्रतिकूलताओं के थपेड़े खाते रहने की स्थिति में चट्टान की तरह दृढ़ व ठोस भी बने रहो।- द्रोणाचार्य
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२४- यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - वल्लभभाई पटेल

रहीम


अब्दुल रहीम खान-ए-खाना (1556-1627) जो कि रहिमदासजी के नाम से भी जाने जाते थे, अकबर के विश्वासपात्र बैरम खान के पुत्र थे और भारतवर्ष के महानतम कवियों में से एक थे। रहीम के दोहों में नीति की बातें बहुत ही सरल ढ़ंग से अभिव्यक्त हुई हैं।
१-
सीत हरत, तम हरत नित, भुवन भरत नहि चूक।
रहिमन तेहि रबि को कहा, जो घटि लखै उलूक।।
२-
समय-लाभ सम लाभ नहिं, समय-चूक सम चूक।
चतुरन-चित रहिमन लगी, समय-चूक ही हूक।।
३-
रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाड़त साथ।
खग मृग बसत अरोग बन, हरि अनाथ के नाथ।।
४-
रहिमन तीन प्रकार तें, हित अनहित पहिचान।
पर-बस परे, परोस बस, परे मामला जान।।
५-
रन बन ब्याधि बिपत्ति में, रहिमन मरै न रोय।
जो रक्षक जननी-जठर, सो हरि गये कि सोय।।
६-
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
बैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय।।
७-
पावस देखि रहीम मन, कोकिल साधै मौन।
अब दादुर बक्ता भये, हमको पूछत कौन।।
८-
रहिमन तहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।।
९-
रहिमन कठिन चितान तैं, चिन्ता को चित चेत।
चिता दहति निर्जीव को, चिन्ता जीव समेत।।
१०-
रहिमन प्रीति सराहिये, मिलै होत रंग दून।
ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून।।
११-
जाकी जैसी बुद्धि है, वैसी कहै विचारि।
ताको बुरा न मानिये, लेन कहां सू जाय।।
१२-
अब रहीम मुश्किल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम।।
सांचे ते तो जग नहीं, झूठे मिलै न राम।।
१३-
रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सनमान।
घटत मान देखिय जबहिं, तुरतहि करिय पयान।।
१४-
कमला थिर न रहीम जग, यह जानत सब कोय।
पुरुष पुरातन की बहू, क्यों न चंचला होय।।
१५-
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
१६-
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
१७-
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥
१८-
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥
१९-
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥
२०-
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
२१-
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥
२२-
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥
२३-
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
२४-
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥


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