सोमवार, 1 जून 2009

ज्ञान

1) बोलने से अहंकार, सुनने से ज्ञान, मनन से सृजन और सदाचार से प्रसिद्धि आचरण में समाहित होती है।
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2) ब्रह्म ज्ञान बिनु बात न करहीं, पर निन्दा करि विष रस भरही।।
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3) मेघ चाहे उपाधियॉ व जागीरे बरसा दे, धन चाहें हमें खोजें, किन्तु ज्ञान को तो हमें ही खोजना पडेगा।
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4) मनुष्य जीवन पाकर जिसने ज्ञान की कतिपय बूंदे इकट्ठी न की , उसने मानो इस रतन को मिट्टी के मोल खो दिया।
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5) विद्वान वे व्यक्ति हैं जो अपने ज्ञान के अनुसार आचरण करते है।
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6) विज्ञान बाहर की प्रगति हैं और ज्ञान अन्त: की अनुभूति है।
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7) भरे बादल और भरे वृक्ष नीचे झुकते हैं, सज्जन ज्ञान और धन पाकर विनम्र बनते है।
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8) भागवत में ज्ञान और वैराग्य को भक्ति के बेटे कहा है।
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9) पढिबे को फल गुनब हैं, गुनबे को फल ज्ञान। ज्ञान को फल हरिनाम हैं, कहि श्रुति संत पुराण।
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10) परमात्मा का ज्ञान परमात्मा से अभिन्न होने पर ही होता हैं और संसार का ज्ञान संसार से अलग होने पर ही होता है-यह बात आप याद कर ले।
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11) ज्ञान यज्ञ की लाल मशाल में मेरे हर प्रियजन को श्रद्धा और स्नेह डालते ही रहना हैं और इसे किसी भी कीमत पर बुझने नहीं देना है।
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12) ज्ञान की सार्थकता आचरण में है।
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13) ज्ञान की नौका से भवसागर को पार करे।
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14) ज्ञान का अर्थ हैं-उत्कृष्ट चिन्तन तथा भक्ति का तात्पर्य हैं संवेदना, भावना।
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15) ज्ञान को कर्म का सहयोग न मिले तो कितना ही उपयोगी होने पर भी वह ज्ञान निरर्थक है।
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16) ज्ञान के स्पर्श से मनुष्य अत्यधिक महान् बन सकता है।
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17) ज्ञान केवल सत्य में पाया जाता है।
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18) ज्ञान भक्ति की शुरुआत हैं, प्रारम्भ हैं और भक्ति ज्ञान की पराकाष्ठा।
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19) ज्ञान दार्शनिक चिन्तन मात्र से नहीं खुद की परिस्थितियों से जूझने से आता है।
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20) ज्ञान वह पंख हैं जिसके द्वारा हम स्वर्ग की ओर उडते है।
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21) ज्ञान और कर्म से समृद्धि उपलब्ध होती है।
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22) ज्ञान और चरित्र मानव जीवन की कसौटी है।
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23) ज्ञान गुण प्राप्त करने के लिये जिस वस्तु की प्रथम एवं प्रमुख आवश्यकता हैं, वह हैं-शिक्षा। शिक्षा ज्ञान की आधार भूमि है।
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24) ज्ञानयज्ञ इस युग का सबसे बडा परमार्थ है।

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