शनिवार, 26 दिसंबर 2009

हम नन्हें-मुन्ने बच्चे ही, इस देश की तकदीर हैं

राजस्थान के डूंगरपुर जिले के रास्तपाल गाँव की 19 जून, 1947 की घटना हैःउस गाँव की 10 वर्षीय कन्या काली अपने खेत से चारा सिर पर उठाकर आ रही थी। हाथ में हँसिया था। उसने देखा कि 'ट्रक के पीछे हमारे स्कूल के मास्टर साहब बँधे हैं और घसीटे जा रहे हैं।'

काली का शौर्य उभरा, वह ट्रक के आगे जा खड़ी हुई और बोली- "मेरे मास्टर को छोड़ दो।"

सिपाही- "ऐ छोकरी ! रास्ते से हट जा।" "नहीं हटूँगी। मेरे मास्टर साहब को ट्रक के पीछे बाँधकर क्यों घसीट रहे हो?" "मूर्ख लड़की ! गोली चला दूँगा।"

सिपाहियों ने बंदूक सामने रखी। फिर भी उस बहादुर लड़की ने उनकी परवाह न की और मास्टर को जिस रस्सी से ट्रक से बाँधा गया था उसको हँसिये काट डाला !

लेकिन निर्दयी सिपाहियों ने, अंग्रेजों के गुलामों ने धड़ाधड़ गोलियाँ बरसायीं। काली नाम की उस लड़की का शरीर तो मर गया लेकिन उसकी शूरता अभी भी याद की जाती है।

काली के मास्टर का नाम था सेंगाभाई। उसे क्यों घसीटा जा रहा था? क्योंकि वह कहता था कि 'इन वनवासियों की पढ़ाई बंद मत करो और इन्हें जबरदस्ती अपने धर्म से च्युत मत करो।'

अंग्रेजों ने देखा कि 'यह सेंगाभाई हमारा विरोध करता है सबको हमसे लोहा लेना सिखाता है तो उसको ट्रक से बाँधकर घसीटकर मरवा दो।'

वे दुष्ट लोग गाँव के इस मास्टर की इस ढँग से मृत्यु करवाना चाहते थे कि पूरे डूंगरपुर जिले मे दहशत फैल जाय ताकि कोई भी अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज न उठाये। लेकिन एक 10 वर्ष की कन्या ने ऐसी शूरता दिखाई कि सब देखते रह गये ! कैसा शौर्य ! कैसी देशभक्ति और कैसी धर्मनिष्ठा थी उस 10 वर्षीय कन्या की। बालको ! तुम छोटे नहीं हो।

हम बालक हैं तो क्या हुआ, उत्साही हैं हम वीर हैं।
हम नन्हें-मुन्ने बच्चे ही, इस देश की तकदीर हैं।।

तुम भी ऐसे बनो कि भारत फिर से विश्वगुरु पद पर आसीन हो जाय। आप अपने जीवनकाल में ही फिर से भारत को विश्वगुरु पद पर आसीन देखो

1 टिप्पणी:

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

मेरे ब्‍लाग महाशक्ति पर आपके कमेन्‍ट द्वारा इस प्रकल्‍प की जानकारी प्राप्‍त हुयी, बहुत अच्‍छा लगा। आपको साधुवाद, इस महान यज्ञ मे यदि मेरी आहुति की आवाश्‍यकता हो तो नि:संकोच आदेश करे।

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