शनिवार, 19 दिसंबर 2009

सेवा की साध

देशबंधु चितरंजनदास के दादा जगबंधु एक परोपकारी पुरूष थे। थके माँदे मुसाफिरों के लिए उन्होनें अपने गाँव में एक धर्मशाला बनावा रखी थी। उनके हृदय में सभी प्रकार के दुखिया मनुष्यों के प्रति सहानुभूति थी। एक दिन पालकी में बैठकर वे गाँव जा रहे थे। रास्ते में गर्मी से बेहाल और चलने में असमर्थ एक ब्राह्मण जा रहा था। जगबंधुदास स्वयं पालकी से उतर गए और उस ब्राह्मण को पालकी में बैठाकर गाँव पहुँचाया। 

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