शनिवार, 26 दिसंबर 2009

लाल बहादुर शास्त्री

एक लड़का काशी में हरिश्चन्द्र हाई स्कूल में पढ़ता था। उसका गाँव काशी से 8 मील दूर था। वह रोजाना वहाँ से पैदल चलकर आता, बीच में जो गंगा नदी बहती है उसे पार करता और फिर विद्यालय पहुँचता। उस जमाने में गंगा पार करने के लिए नाववाले को दो पैसे देने पड़ते थे। दो पैसे आने के और दो पैसे जाने के, कुल चार पैसे यानी पुराना एक आना। महीने में करीब दो रुपये हुए। जब सोने के एक तोले का भाव सौ रुपयों से भी कम था तब के दो रुपये। आज के तो पाँच-पच्चीस रुपये हो जायें। उस लड़के ने अपने माँ-बाप पर अतिरिक्त बोझा न पड़े इसलिए एक भी पैसे की माँग नहीं की। उसने तैरना सीख लिया। गर्मी हो, बारिश हो कि ठण्डी हो गंगा पार करके हाई स्कूल में जाना उसका क्रम हो गया। ऐसा करते-करते कितने ही महीने गुजर गये। एक बार पौष मास की ठण्डी में वह लड़का सुबह की स्कूल भरने के लिए गंगा में कूदा। तैरते-तैरते मझधार में आया। एक नाव में कुछ यात्री नदी पार कर रहे थे। उन्होंने देखा कि छोटा सा लड़का अभी डूब मरेगा। वे नाव को उसके पास ले गये और हाथ पकड़कर उसे नाव में खींच लिया। लड़के के मुख पर घबराहट या चिन्ता का कोई चिन्ह नहीं था। सब लोग दंग रह गये कि इतना छोटा है और इतना साहसी ! वे बोले-"तू अभी डूब मरता तो ? ऐसा साहस नहीं करना चाहिए।"

तब लड़का बोला- "साहस तो होना ही चाहिए ही। अगर अभी से साहस नहीं जुटाया तो जीवन में बड़े-बड़े कार्य कैसे कर पायेंगे ?" लोगों ने पूछा- "इस समय तैरने क्यों आये? दोपहर को नहाने आते ?" लड़का बोलता है- "मैं नदी में नहाने के लिए नहीं आया हूँ, मैं तो स्कूल जा रहा हूँ।"

"फिर नाव में बैठकर जाते ?" "रोज के चार पैसे आने-जाने के लगते हैं। मेरे गरीब माँ-बाप पर मुझे बोझ नहीं बनना है। मुझे तो अपने पैरों पर खड़े होना है। मेरा खर्च बढ़ेगा तो मेरे माँ-बाप की चिन्ता बढ़ेगी, उन्हें घर चलाना मुश्किल हो जायेगा।" लोग उस लड़के को आदर से देखते ही रह गये। वही साहसी लड़का आगे चलकर भारत का प्रधानमंत्री बना। वह लड़का था लाल बहादुर शास्त्री। शास्त्री जी उस पद पर भी सच्चाई, साहस, सरलता, ईमानदारी, सादगी, देशप्रेम आदि सदगुण और सदाचार के मूर्तिमन्त स्वरूप थे। ऐसे महामानव भले फिर थोड़े समय ही राज्य करें पर एक अनोखा प्रभाव छोड़ जाते हैं जनमानस पर।

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