गुरुवार, 19 नवंबर 2009

शत्रु वह जो जी दुखाए।

एक बार शेखसादी के पास एक व्यक्ति गया और कहने लगा-``आपका अमुख शत्रु आपकी बुराई कर रहा था और आपको तरह-तरह की गालिया बक रहा था।´´

सो तो में भी जानता हूँ, थोड़ा रूककर शेखसादी बोले- ``भाई शत्रु तो कहलाता वही हैं, जिससे बैर-विरोध हो। पर कम-से-कम इतना तो हैं कि वह मुँह के सामने कुछ नहीं कहता। आप तो मेरे सामने ही बुराई कर रहे हैं, अब आप ही बताइये कि मेरा शत्रु कौन हैं ? अच्छा होता, आपने मेरा जी न दुखाया होता और चुपचाप ही बने रहते। बुराई करने वाला व्यक्ति बहुत लज्जित हुआ और वहाँ से उठ कर चला गया। उस दिन से उसने कभी किसी की बुराई नहीं की।

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin