रविवार, 9 अगस्त 2009

भोजन

1) द्वेष करने वाला अपने भोजन को विषाक्त कर देता है। 
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2) भोजन करके करिये मूत्र, गुर्दा स्वस्थ रहे ये सूत्र। 

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3) भोजन स्वास्थ्य की जरुरत हैं, स्वाद की नहीं। 

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4) पैरो को धाने के बाद ही भोजन करें , किन्तु पैरो को धोकर ( गीले पैर ) शयन न करे। 

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5) दाहिने स्वर भोजन करें, बॉये पीवे नीर। ऐसा संयम जब करे, सुखी रहें शरीर। 

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6) दूसरों से पूर्व भोजन समाप्त कर उठों नही, और यदि उठ जाये तो उनसे क्षमा मॉगनी चाहिये। 

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7) जो अपने हिस्से का काम किये बिना ही भोजन पाते हैं वे चोर है। 

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8) आधा भोजन दुगुना पानी, तिगुना श्रम, चौगुनी मुस्कान। 

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9) हे पुरुष श्रेष्ठ ! खाते हुये कभी भी शंका न करें ( कि यह अन्न मुझे पचेगा या नही ) 

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10) जैसा अन्न खाते हैं, मन बुद्धि का निर्माण भी वैसा ही होता है। 

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11) प्राणी नित्य जैसा अन्न खाता हैं, उसकी वैसी ही सन्तति होती है। 

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