मंगलवार, 11 अगस्त 2009

सच्चा ब्रह्मचर्य

चैतन्य महाप्रभु न्याशास्त्र के विद्वान थे । परमज्ञानी थे। पत्नी विष्णुप्रिया थीं। दोनो का जीवन ठीक ही चल रहा था, पर श्री कृष्ण में भक्ति जगी तो जबरदस्त वैराग्य जागा । दिनो दिन खाना नहीं खाते। `कृष्ण कृष्ण' कहकर पड़े रहते । ऐसी स्थिति हो गई कि घर वालो ने कहा- ``ऐसी स्थिति में शरीर छूटे , उससे अच्छा है कि संन्यास दिला दें । ´´ गुरू के पास ले गए । उनने कहा कि हम परीक्षा लेंगें । गुरू ने जीभ पर शक्कर के दाने रखे । वे उड़ गए। गले नही । मन उर्ध्वगामी हो चुका था। वृत्ति भागवताकार हो चुकी थी । गुरू भारती तीर्थ बोले- ``यह तो बडी उच्चस्तरीय आत्मा है। यह शिष्य नहीं, हमारे गुरू होने योग्य है। हमारा अहोभाग्य है। ऐसा व्यक्ति नही देखा , जो इतना ईश्वरोन्मुख हो । यही सच्चा ब्रह्मचर्य है। ´´

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