रविवार, 9 अगस्त 2009

अहंकार

1) मनुष्य जितना छोटा होता हैं, उसका अहंकार उतना ही बडा होता है।
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2) मनुष्य अहंकार को मार कर ही परमात्मा के द्वार तक पहुंच पाता है।
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3) स्वार्थ, लापरवाही और अहंकार की मात्रा का बढ जाना ही किसी व्यक्ति के पतन का कारण होता है।
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4) जहॉं व्यक्ति का मिथ्या अहंकार समाप्त हो जाता हैं, वहीं उसकी गरिमा आरम्भ होती है।
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5) अहंकार विहीन प्रतिभा जब अपने चरमोत्कर्ष को छूती हैं तो वहॉं ऋषित्व प्रकट होता है।
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6) अहंकार समस्त महान् गलतियों की तह में होता है।
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7) अहंकारी और अधिकार के मद में चूर व्यक्ति कभी किसी को प्रेरणा नहीं दे पाता है।
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8) अहंता बडप्पन पाने की आकांक्षा को कहते हैं, दूसरों की तुलना में अपने को अधिक महत्व, श्रेय, सम्मान, मिलना चाहिये। यही हैं अहंता की आकांक्षा।
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9) अहम् का त्याग होने पर व्यक्तित्व नहीं रहता।
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10) अच्छाई के अहं और बुराई की आसक्ति दोनो से उपर उठ जाने में ही सार्थकता है।
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11) ध्यान रहे, चिन्तन स्वयं के चरित्र को विनिर्मित करने के लिये होता हैं, न कि दूसरे को तर्क से पराजित करके स्वयं के अहं की तुष्टि करने के लिये।

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12) अहं की भावना रखना एक अक्षम्य अपराध है।
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