शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

”भागो मत. सामना करो ।”

एक बार स्वामी विवेकानंद काशी में किसी जगह जा रहे थे । उस स्थान पर बहुत से बंदर रहते थे, जो आने-जाने वालों को अकारण ही तंग करने में बडे विख्यात थे । उनके साथ उन्होंने वही किया । स्वामी जी का रास्ते से गुजरना अच्छा न लगा । वे चिल्लाकर उनकी ओर दौडे और पैरों में काटने लगे । उनसे छूटकारा पाना असंभव प्रतीत हुआ । वे तेजी से भागे, पर वे जितना भागते, बंदर भी उतना दौडते और काटते । तभी एक अपरिचित स्वर सुनाई दिया, भागो मत । सामना करो । बस वे खडे हो गए और बंदरों को ऐसी जोर की डांट लगाई कि एक घुडकी में ही बंदर भाग खडे हुए । जीवन में जो कुछ भयानक है, उसका हमें साहसपूर्वक सामना करना पडेगा । परिस्थितियों से भागना कायरता है, कायर पुरूष कभी विजयी नहीं होगा । भय, कष्ट और अज्ञान का जब हम सामना करने को तैयार होंगे, तभी वे हमारे सामने से भागेंगे ।

2 टिप्‍पणियां:

Rajender Chauhan ने कहा…

इस छोटी सी कहानी से आपने जीवन की सीख दी है...किसी भी परेशानी से घबराना नही चहिए, उस का सामना करना चहिए......

राजेंद्र
http://rajenderblog.blogspot.com

Mahamandal blog spot.com ने कहा…

That is Why Swami Vivekananda can be the only Ideal for the youth of India to follow(Not Bapuji or Chachaji of India). 12th January is the " Youth-Day of India " and 12th jan 1863 is the birth-day of our most beloved
elder brother SWAMIJI !Jai Swamiji !

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin