शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

नरेन्द्र बना स्वामी विवेकानंद

रामकृष्ण परमहंस के पास नरेंद्र को आते काफी अवधि हो चुकी थी । एक दिन वे अपने शिष्यों से बोले, अब तक तो नरेंद्र के पास सब कुछ था, पर अब माँ इसे बहुत दुःख देंगी । क्यों ? क्योंकि उन्हें इसका विकास करना है । नरेंद्र को काफी दुःख-वेदनाएं सहन करनी होंगी । तब ही तो वह लोक-शिक्षण हेतु गढ पाएगा अपने आप को । उनने अपने शिष्यों को बताया कि दुःख ही भावशुद्धि करते हैं । दुःख ही व्यक्ति को अंदर से मजबूत बनाते हैं । नरेंद्र के ऊपर दुःखों की बाढ आ गई । सब कुछ छिन गया । रोटी के लिए तरस गए । कई गहरी पीडाएं एक साथ आईं । उनने अपनी बहन को आत्महत्या करते देखा, माँ का रूदन देखा । रामकृष्ण उनकी हर पीडा में दुःख भी व्यक्त करते थे, पर जानते थे, यह सब जरूरी है । सामयिक है । इसी ने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद बनाया । 

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