शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

महाकवि कालिदास

मालव राज्य की राजकुमारी विद्योत्तमा अत्यंत बुद्धिमान और रूपवती थी. उसने यह प्रण लिया था कि वह उसी युवक से विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा.

विद्योत्तमा से विवाह की इच्छा अपने मन में लिए अनेक विद्वान् दूर-दूर से आये लेकिन कोई भी उसे शास्त्रार्थ में हरा न सका. उनमें से कुछ ने अपमान और ग्लानि के वशीभूत होकर राजकुमारी से बदला लेने के लिए एक चाल चली. उन्होंने एक मूर्ख युवक की खोज प्रारंभ की. एक जंगल में उन्होंने एक युवक को देखा जो उसी डाल को काट रहा था जिसपर वह बैठा हुआ था.

विद्वानों को अपनी हार का बदला लेने के लिए आदर्श युवक मिल गया. उन्होंने उससे कहा – “यदि तुम मौन रह सकोगे तो तुम्हारा विवाह एक राजकुमारी से हो जायेगा”.

उन्होंने युवक को सुन्दर वस्त्र पहनाये और उसे शास्त्रार्थ के लिए विद्योत्तमा के पास ले गए. विद्योत्तमा से कहा गया कि युवक मौन साधना में रत होने के कारण संकेतों में शास्त्रार्थ करेगा.

विद्वानों ने युवक के मूर्खतापूर्ण सकेतों की ऐसी व्याख्या की कि विद्योत्तमा को अंततः अपनी हार माननी पड़ी और उसने युवक से विवाह कर लिया.

कुछ दिनों तक युवक मौन साधना का ढोंग करता रहा लेकिन एक दिन वह ऊँट को देखकर गलत उच्चारण कर बैठा. विद्योत्तमा को सच्चाई का पता चल गया कि उसका पति जड़बुद्धि है.

क्रोधित विद्योत्तमा ने अपने पति को प्रताड़ित और अपमानित करके महल से निकाल दिया. युवक ने संकल्प लिया कि वह उच्च कोटि का विद्वान बनकर ही महल में लौटेगा.

अपने संकल्प के अनुसार युवक ने विद्यारम्भ कर दिया और कठोर अध्ययन एवं परिश्रम के उपरांत महान विद्वान बना. कालांतर में यही युवक महाकवि कालीदास के नाम से प्रख्यात हुआ।

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