गुरुवार, 16 जुलाई 2009

महापुरुषों के विचार - ४


१- अपनी याददास्त के सहारे जीने के बजाय अपनी कल्पना के सहरे जिओ । — लेस ब्राउन
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२- केवल वे ही असंभव कार्य को कर सकते हैं जो अदृष्य को भी देख लेते हैं । — श्रीराम शर्मा आचार्य
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३- ज्ञान प्राप्ति का एक ही मार्ग है जिसका नाम है , एकाग्रता । शिक्षा का सार है , मन को एकाग्र करना , तथ्यों का संग्रह करना नहीं । — श्री माँ
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४- एकाग्रता ही सभी नश्वर सिद्धियों का शाश्वत रहस्य है । — स्टीफन जेविग
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५- तर्क , आप को किसी एक बिन्दु “क” से दूसरे बिन्दु “ख” तक पहुँचा सकते हैं। लेकिन , कल्पना , आप को सर्वत्र ले जा सकती है। — अलबर्ट आइन्सटीन
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६- जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है । –डा विक्रम साराभाई
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७- कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो, आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ? - विवेकानंद
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८- प्रत्येक व्यक्ति के लिये उसके विचार ही सारे तालो की चाबी हैं । — इमर्सन
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९- शारीरिक गुलामी से बौद्धिक गुलामी अधिक भयंकर है । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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१०- ग्रन्थ , पन्थ हो अथवा व्यक्ति , नहीं किसी की अंधी भक्ति । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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११- सर्वोत्तम मानव मस्तिष्क की पहचान है , किन्हीं दो पूर्णतः विपरीत विचार धाराऒं को साथ- साथ ध्यान में रखते हुए भी स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता का होना । — स्काट फिट्जेराल्ड

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१२- आत्मदीपो भवः । ( अपना दीपक स्वयं बनो । ) — गौतम बुद्ध

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१३- मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है । — बेकन
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१४- मौनं सर्वार्थसाधनम् । — पंचतन्त्र ( मौन सारे काम बना देता है )
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१५- आओं हम मौन रहें ताकि फ़रिस्तों की कानाफूसियाँ सुन सकें । — एमर्शन
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१६- मौन और एकान्त,आत्मा के सर्वोत्तम मित्र हैं । — बिनोवा भावे
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१७- मौन , क्रोध की सर्वोत्तम चिकित्सा है । — स्वामी विवेकानन्द
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१८- मनुष्य की वास्तविक पूँजी धन नहीं , विचार हैं । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
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१९- मनःस्थिति बदले , तब परिस्थिति बदले । - पं श्री राम शर्मा आचार्य
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२०- ग़लतियाँ मत ढूंढो , उपाय ढूंढो | -– हेनरी फ़ोर्ड
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२१- जब तक आप ढूंढते रहेंगे, समाधान मिलते रहेंगे | -– जॉन बेज
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२२- ज्ञानं भार: क्रियां बिना । आचरण के बिना ज्ञान केवल भार होता है । — हितोपदेश
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२३- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन् ।
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( कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है , फल में कभी भी नहीं ) — गीता
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२४- आरम्भ कर देना ही आगे निकल जाने का रहस्य है । - सैली बर्जर

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