सोमवार, 15 जून 2009

परदा प्रथा

परदा प्रथा एक ऐसी सड़ी-गली परंपरा है, जो न्यूनाधिक रुप में समाज में चारों ओर व्याप्त है। उसके उन्मूलन हेतु इस सदी के प्रारंभ से ही प्रयास चलते आए हैं। महात्मा गांधी के जीवन की एक घटना है, जो बताती है इस प्रथा के प्रति आक्रोश महिलाओं की ओर से कैसे उभरकर आया ?

इलाहाबाद में एक सभा में मौलाना आजाद व गांधी जी दोनो को ही भाषण देना था। मुसलिम बहुल समाज था। महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था की गई थी। उनके सामने चिक डाल दी गई , ताकि उनकी निगाह वक्ता व श्रोतागणों पर तथा श्रोताओं की निगाह उन पर न पड़े । बुरके और चिक के बाद भी सभा आयोजकों में असमंजस था कि कहीं महिलाओ का मुँह खुला न दीखे । वे बोले-``मौलाना आजाद व गांधी जी तब बोलें तो आँख पर पट्टी बाँध लें । इस हास्यास्पद सुझाव पर मौलाना ने कहा-``मैं महिलाओं की ओर पीठ कर लूँगा। गांधी जी बाले-``मैं नीचे निगाह करके बोलूँगा ।´´ मौलाना का भाषण तो समाप्त हुआ, पर जब गांधी जी ने बोलना चालु किया तो सारी मुसलिम महिलाएँ बुरका खोल, चिक हटाकर मंच के सामने बैठ गई । अग्रगामी स्त्रियों का कहना था-``पीरों से भी कोई परदा किया जाता है। ´´ यह अपने आप में एक क्रांतिकारी आरंभ था, जो बाद में आंदोलन रुप लेकर बड़ा बना । बाद में राजर्षि टंड़न ने कहा-`` यदि सभी महिलाएँ पुरुषों को पीर (महात्मा) व पुरूष स्त्रियों को देवी स्वरुप मानने लगे। तो इस प्रथा को आमूलचूल नष्ट हाने में काई देर न लगे।´´

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