शनिवार, 13 सितंबर 2008

वंदन करते हैं हॄदय से

वंदन करते हैं हॄदय से,
याचक हैं हम ज्ञानोदय के,
वीणापाणी शारदा मां !
कब बरसाओगी विद्या मां?
कर दो बस कल्याण हे मां।
हे करुणामयी पद्मासनी
हे कल्याणी धवलवस्त्रणी!
हर लो अंधकार हे मां,
कब बरसाओगी विद्या मां ?
कर दो बस कल्याण हे मां।
जीवन सबका करो प्रकाशित,
वाणी भी हो जाए सुभाषित,
बहे प्रेम करुणा हॄदय में,
ना रहे कोई अज्ञान किसी में,
ऎसा दे दो वरदान हे मां,
कर दो बस कल्याण हे मां।

ज्ञानदीप से दीप जले,
विद्या धन का रुप रहे,
सौंदर्य ज्ञान का बढ़ जाए,
बुद्धी ना कुत्सित हो पाए,
ऎसा देदो वरदान हे मां!
कर दो बस कल्याण हे मां!
कर दो बस कल्याण हे मां॥

--प्रेमलता

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