शनिवार, 13 सितंबर 2008

उम्मीदों के दीप जला


दूर अँधेरा-मन का कर दे,
आशाओं के-दीप-जला।
उल्लासों से जीवन भर दे,
जिज्ञासा के-दीप-जला।।
दिल की दुनियाँ रोशन होगी,
उम्मीदों के-दीप-जला।।
अंधयारे की घडी न स्थिर,
पल पल जाने वाली है।
कहाँ अँधेरा अमां रात का,
चहुँ देख उजियाली है।।
छोड हताशा और निराशा,
विश्वासों के दीप-जला।
दिल की दुनियाँ रोशन होगी,
उम्मीदों के दीप-जला।।
मन के जीते-जीत उसी का,
नाम भला है खुशहाली।
समृद्धि की शाम उसी का,
नाम भला है दीवाली।।
समृद्धि -पैगाम-समझ के-
आभासों के दीप जला।
दिल की दुनियाँ रोशन होगी,
उम्मीदों के दीप-जला।।
विश्वासों की ऊर्जा मन में,
हृदय दीप प्रज्वलित कर।
मुस्कानों को मीत बना ले,
हुलसित हृदय प्रफुल्लित कर।।
उजालों के धनी-प्रणेता,
आभाओं के दीप-जला।
दिल की दुनियाँ रोशन होगी,
उम्मीदों के दीप-जला।।
घर-आँगन मुंडेर द्वार पे,
हो आलोक-उजालों का।
मन के सूने गलियारों में,
भर दे रंग-उजालों का।।
आत्मा ज्ञान-प्रज्ञा के मन में
प्रभाओं के दीप-जला।
दिल की दुनियाँ रोशन होगी
उम्मीदों के दीप-जला।।
खुद दीपक बन-जला नहीं-
उसको जीवन मिला नहीं।
बिना जले जो करे उजाला,
ऐसा दीपक-जला नहीं।।
हृदयाकाश-आलोकित हो,
ताराओं से दीप-जला।
दिल की दुनियाँ रोशन होगी,
उम्मीदों के दीप-जला।।

--रामगोपाल राही

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