रविवार, 14 सितंबर 2008

उद्देश्य ऊँचा रखें

मिट्टी के खिलौने जितनी आसानी से मिल जाते हैं, उतनी आसानी से सोना नहीं मिलता। पापों की ओर आसानी से मन चला जाता है, किंतु पुण्य कर्मों की ओर प्रवृत्त करने में काफी परिश्रम करना पड़ता है। पानी की धारा नीचे पथ पर कितनी तेजी से अग्रसर होती है, किन्तु अगर ऊँचे स्थान पर चढ़ाना हो, तो पंप आदि लगाने का प्रयत्न किया जाता है।

बुरे विचार, तामसी संकल्प, ऐसे पदार्थ हैं, जो बड़ा मनोरंजन करते हुए मन में धॅस जाते हैं और साथ ही अपनी मारकशक्ति को भी ले आते हैं। स्वार्थमयी नीच भावनाओं का वैज्ञाननिक विश्लेषण करके जाना गया है कि वे काले रंग की छुरियों के समान तीक्ष्ण एवं तेजाब की तरह दाहक होती हैं। उन्हें जहाँ थोड़ा-सा भी स्थान मिला कि अपने सदृश और भी बहुत-सी सामग्री खींच लेती हैं। विचारों में भी पृथ्वी आदि तत्त्वों की भाँति खिंचने और खींचने की शक्ति होती है। तदनुसार अपनी भावना को पुष्ट करने वाले उसी जाति के विचार उड़-उड़ कर वहीं एकत्रित होने लगते हैं।

यही बात भले विचारों के संबंध में है। वे भी अपने सजातियों को अपने साथ इकट्ठे करके बहुकुटुंबी बनने में पीछे नहीं रहते। जिन्होंने बहुत समय तक बुरे विचारों को मन में स्थान दिया है, उन्हें चिंता, भय और निराशा का शिकार होना ही पड़ेगा।

-अखण्ड ज्योति

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