शनिवार, 13 सितंबर 2008

सुनो सुनो ए बहिन- भाइयो |

सुनो सुनो ए बहिन- भाइयो, एक बड़े पते की बात |
नए सृजन का समय आ गया, उठो बढाओ हाथ ||
यों तो करने वाले करते भारी पूजा-पाठ
लेकिन प्रभु का काम न करते , करते कोरी बात ||
बात ही बात, न देते साथ ||

भ्रम के भटकावे छोडो, कुछ काम प्रभु का कर लो रे |
लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे ||

सुनो सुनो युग दूत बुलाता, मत उसको झुठलाओ |
भीतर से सद्भाव जगाता, उस पर ध्यान लगाओ ||
अलग-अलग मत भटको भाई, मिलकर कदम बढाओ |
युग विचार, युग ऋषि से मिलकर, जन-जन तक पहुँचाओ ||
अवसर अनमोल पकड़ लो रे, अपना प्रयास तो कर लो रे |
थोडी हिम्मत तो कर लो रे | 

जप-तप का बस करो ना, सुनते हो कुछ काम करो ना |
मन की मनमानी छोडो, प्रज्ञा की राह पकड़ लो रे ||

लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे |
मत डरना यदि असुर शक्तियाँ, दिखें भयानक भारी ||
युग के एक थपेडे से, ढह जाते अत्याचारी |
समय-समय पर युग दूतों ने, बिगड़ी बात सँभारी ||
प्रज्ञा पुत्रों ! आगे आओ, आज तुम्हारी बारी |
मन को छोटा मत होने दो, साहस मत ओछा होने दो ||
प्रभु कि मर्जी भी होने दो |

प्रभु की लीला याद करो रे, गिद्ध-ग्वाल सा शौर्य भरो रे |
कल की कायरता छोडो, बासंती चोल रंग लो रे |
लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे ||
पढ़ते हैं इतिहास तो कहते काश ! कि हम भी होते |
हम भी कुछ करके दिखलाते, कभी न अवसर खोते ||
हम ना अवसर खोते भैया, सबसे आगे होते |
उनने केवल गीत न गाये - मेरा रंग दे बसंती चोला ||
उनने केवल गीत न गाये - जौहर दिखा शहीद कहाये |
वे गोली पर भी डटे रहे - तुम गाली से डर रहे अरे ||
कैसी गलती कर रहे अरे ||

अपनी गरिमा याद करो ना- काम करो बकवास करो ना |
ढुलमुल ढकोसले छोडो- वीरों की राह पकड़ लो रे ||
लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे ||

भले काम के लिए कहो तो - हमको समय कहाँ है ?
सच पूछो तो वक्त काटते फिरते जहाँ - तहाँ हैं ||
हम समय अकारण खोते- है समय नहीं यों रोते हैं |
हर जीवन कि यही व्यथायें- अजब समय की अजब कथाएं ||
यह अपनी अजब कमाई है, गत अपनी स्वयं बनायी है |
अब तो भूल सुधार करो रे - ख़ुद अपना उद्धार करो रे ||
यह रुढिवादिता- रास्ता विवेक का गह लो रे |
लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे ||

प्रज्ञा युग आने वाला है - युग ने ली अंगड़ाई |
युग निर्माण योजना लेकर - नया संदेशा लाई ||
हर मन में देवत्व जगाना, भू पर स्वर्ग बनाना है |
अपना कर सुधार इस जग को - फिर से श्रेष्ठ बनाना है |
युग ऋषि का संदेश ह्रदय में- सबके हमें बिठाना है |
अंशदान कर समयदान कर- घर-घर अलख जगाना है ||
युग वेला है - चूक न जाना- शंका में मत समय गँवाना |
शंका डायन को छोडो- उल्लास ह्रदय में भर लो रे ||
लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे ||

प्रज्ञा पुत्र कहाने वालों- जीवन धन्य बना लो |
जाग्रत आत्मा बनकर भाई- सोये भाग्य जगा लो ||
साझेदारी प्रभु से कर लो- जो चाहो सो पा लो |
ऐसा समय ना फिर-फिर आता-आओ लाभ उठा लो ||
समझदार कहलाने वालों- ना समझी से हाथ हटा लो |
अपना ओछापन छोडो- प्रभु की विशालता वर लो रे ||
नाव बाँधकर इस बेडे से, ख़ुद भवसागर तर लो रे |
लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे ||

बहुत बढ़ गए पाप धरा पर- उनको मार भगायें |
देव संस्कृति को हम फिर से- घर-घर में पहुंचायें ||
घोड़ा अश्वमेध का छूटा- विजयी उसे बनायें |
महाकाल की सुनें गर्जना- जागें और जगायें ||
कुछ बीज पुण्य के बोओ रे- यह स्वर्ण घड़ी मत खोओ रे |
जागो अब तो मत सोओ रे ||

अपना तेजस् भूल न जाना, इस जग में ओजस् फैलाना |
ओछापन मन का छोडो- छाती चौड़ी कर लो रे ||
लुटा रहा युग पुरूष सिद्धियाँ, चाहे झोली भर लो रे ||

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